शनि कवचम् | Shani Kavacham
शनि ग्रह की पीड़ा, भय और बाधाओं से रक्षा करने वाला शक्तिशाली शनि कवचम्। हिंदी में सम्पूर्ण पाठ, लाभ, और महत्व के साथ Shani Kavacham पढ़ें।
शनि कवचम् | Shani Kavacham
अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः II
अनुष्टुप् छन्दः II शनैश्चरो देवता II शीं शक्तिः II
शूं कीलकम् II शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः II
1. ध्यान श्लोक
श्लोक
निलांबरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् ।
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः ॥ १ ॥
अर्थ
नीले वस्त्र पहनने वाले, नीले वर्ण के, मुकुट धारण किए, गृध्र (गरुड़ समान पक्षी) पर विराजमान, धनुषधारी, चतुर्भुज, सूर्यपुत्र शनिदेव सदा शांत, प्रसन्न रहें और मुझे सदैव वरदान प्रदान करें।
🔸 2.
श्लोक
ब्रह्मोवाच —
श्रुणूध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत् ।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् ॥ २ ॥
अर्थ
ब्रह्माजी कहते हैं— हे ऋषियों! सुनो, यह शनि पीड़ा को दूर करने वाला महान कवच है। सूर्यपुत्र शनिदेव का यह सर्वोत्तम कवच है।
🔸 3.
श्लोक
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् ।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥ ३ ॥
अर्थ
यह कवच देवताओं के लिए आवास समान है और वज्र के पिंजरे के समान रक्षा करता है। यह शनिदेव को प्रसन्न करता है और सभी प्रकार के सौभाग्य प्रदान करता है।
🔸 4.
श्लोक
ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनंदनः ।
नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कर्णौ यमानुजः ॥ ४ ॥
अर्थ
हे सूर्यनंदन शनिदेव! मेरे ललाट की रक्षा करें।
छायापुत्र शनिदेव मेरी आँखों की रक्षा करें।
यमराज के अनुज शनिदेव मेरे कानों की रक्षा करें।
🔸 5.
श्लोक
नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा ।
स्निग्धकंठश्च मे कंठं भुजौ पातु महाभुजः ॥ ५ ॥
अर्थ
वैवस्वत (सूर्यवंशी) शनिदेव मेरी नाक की रक्षा करें।
भास्करपुत्र मेरे मुख की रक्षा करें।
सुन्दर कंठ वाले शनिदेव मेरे गले की रक्षा करें।
महाबाहु शनिदेव मेरे दोनों भुजाओं की रक्षा करें।
🔸 6.
श्लोक
स्कंधौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः ।
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितत्स्थः ॥ ६ ॥
अर्थ
शनिदेव मेरे कंधों की रक्षा करें।
शुभ प्रदान करने वाले शनिदेव मेरे हाथों की रक्षा करें।
यमराज के भाई शनिदेव मेरे वक्षस्थल (सीना) की रक्षा करें।
असित (नीले वर्ण) वाले शनिदेव मेरे पेट की रक्षा करें।
🔸 7.
श्लोक
नाभिं ग्रहपतिः पातु मंदः पातु कटिं तथा ।
ऊरू ममांतकः पातु यमो जानुयुगं तथा ॥ ७ ॥
अर्थ
ग्रहों के स्वामी शनिदेव मेरी नाभि की रक्षा करें।
मंदगति वाले शनिदेव मेरी कमर की रक्षा करें।
अंतक (शत्रुओं का अंत करने वाले) शनिदेव मेरी जाँघों की रक्षा करें।
यमसमान शनिदेव मेरे घुटनों की रक्षा करें।
🔸 8.
श्लोक
पादौ मंदगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः ।
अङ्गोपाङ्गानि सर्वाणि रक्षेन्मे सूर्यनंदनः ॥ ८ ॥
अर्थ
मन्दगति वाले शनिदेव मेरे पैरों की रक्षा करें।
पिप्पल-वृक्ष-प्रिय शनिदेव मेरे पूरे शरीर की रक्षा करें।
सूर्यनंदन शनिदेव मेरे सभी अंगों और उपांगों की रक्षा करें।
🔸 9.
श्लोक
इत्येतत्कवचं दिव्यं पठेत्सूर्यसुतस्य यः ।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः ॥ ९ ॥
अर्थ
जो व्यक्ति सूर्यपुत्र शनिदेव के इस दिव्य कवच का पाठ करता है, उसे कोई पीड़ा नहीं होती और सूर्यज (शनिदेव) उस पर सदैव प्रसन्न रहते हैं।
🔸 10.
श्लोक
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोऽपि वा ।
कलत्रस्थो गतो वापि सुप्रीतस्तु सदा शनिः ॥ १० ॥
अर्थ
जब शनि खर्च, जन्म, दूसरे भाव, मृत्यु स्थान या पत्नी भाव में हों, तब भी यह कवच पढ़ने से शनिदेव सदा प्रसन्न रहते हैं।
🔸 11.
श्लोक
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे ।
कवचं पठतो नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ॥ ११ ॥
अर्थ
जब सूर्यपुत्र शनि अष्टम, व्यय (बारहवें), जन्म (लग्न) या दूसरे भाव में हों, तब भी जो इस कवच का नित्य पाठ करता है, उसे कोई पीड़ा नहीं होती।
🔸 12.
श्लोक
इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यनिर्मितं पुरा ।
द्वादशाष्टमजन्मस्थदोषान्नाशयते सदा ।
जन्मलग्नास्थितान्दोषान्सर्वान्नाशयते प्रभुः ॥ १२ ॥
अर्थ
सूर्यपुत्र शनि द्वारा निर्मित यह दिव्य कवच अष्टम, द्वादश और जन्म स्थान में स्थित शनि दोषों का नाश करता है।
जन्मलग्न में स्थित सभी दोषों को शनिदेव स्वयं नष्ट कर देते हैं।
🔸 समाप्ति
॥ इति श्रीब्रह्मांडपुराणे ब्रह्म-नारदसंवादे शनैश्चरकवचं संपूर्णम् ॥
अर्थ
ब्रह्मांड पुराण के ब्रह्म–नारद संवाद में वर्णित यह शनैश्चर (शनि) कवच यहाँ पूर्ण हुआ।
FAQs
Q1. शनि कवचम् क्या है?
शनि देव की कृपा प्राप्त करने और कष्टों से बचने के लिए यह एक शक्तिशाली संरक्षण स्तोत्र है।
Q2. शनि कवचम् का पाठ कब करना चाहिए?
शनिवार को सूर्योदय के बाद या शाम के समय पवित्र मन से इसका पाठ करना शुभ माना जाता है।
Q3. शनि कवचम् के क्या लाभ हैं?
यह कष्ट, भय, शनि दोष, बाधाओं, मानसिक तनाव और शत्रु भय को कम करता है तथा आत्मबल बढ़ाता है।
