Who We Are?
आत्मा और परमात्मा
सनातन धर्म कहता है कि हम केवल यह शरीर नहीं हैं।
हम शरीर (देह) नहीं, बल्कि आत्मा (जीव) हैं।
आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। वह शाश्वत, अजन्मा और अमर है।
भगवद्गीता (2.20) कहती है:
“न जायते म्रियते वा कदाचि
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥”
(आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। शरीर नष्ट होने पर भी आत्मा नष्ट नहीं होती।)
जीव का परम उद्देश्य
जीवात्मा का मूल स्वरूप है — सत् (अस्तित्व), चित् (ज्ञान), आनन्द (आनंद)।
हमारा असली उद्देश्य केवल सांसारिक भोग नहीं, बल्कि मोक्ष है — परमात्मा से मिलन।
इसलिए सनातन धर्म कहता है:
धर्म (कर्तव्य पालन)
अर्थ (जीवन निर्वाह)
काम (संतुलित इच्छाएँ)
मोक्ष (परम मुक्ति)
यह पुरुषार्थ चतुष्टय है।
ब्रह्म से एकत्व
उपनिषदों में कहा गया है: “अहं ब्रह्मास्मि” (मैं ब्रह्म हूँ) और “तत्वमसि” (तू वही है)।
इसका अर्थ है कि आत्मा और परमात्मा अलग नहीं, बल्कि एक ही सत्य के अंश हैं।
संस्कृति का दृष्टिकोण
भारतीय संस्कृति कहती है:
हम धरा के पुत्र हैं (भूमिपुत्र)।
हम ऋषियों की संतान हैं, जिन्होंने वेद, पुराण और शास्त्र दिए।
हमारा कर्तव्य केवल अपने लिए जीना नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि के कल्याण के लिए जीना है — “वसुधैव कुटुम्बकम्”।
✨ संक्षेप में:
हम शरीर नहीं, अमर आत्मा हैं।
हमारा लक्ष्य है — धर्म का पालन, आत्मा की शुद्धि और परमात्मा से एकत्व।
हम सनातन संस्कृति के धारणकर्ता हैं, जिनका उद्देश्य केवल स्वार्थ नहीं बल्कि लोक-कल्याण है।
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Q1. स्तोत्र क्या है?
👉 स्तोत्र संस्कृत भाषा में रचित स्तुतिपरक रचना है, जिसका पाठ देवता की कृपा और शांति के लिए किया जाता है।
Q2. स्तोत्र पढ़ने के क्या लाभ हैं?
👉 स्तोत्र पढ़ने से मानसिक शांति, आत्मविश्वास, सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक प्रगति प्राप्त होती है।
Q3. कौन-कौन से स्तोत्र इस संग्रह में शामिल हैं?
👉 शिव स्तोत्र, गणेश स्तोत्र, विष्णु स्तोत्र, देवी स्तोत्र, हनुमान स्तोत्र, नवग्रह स्तोत्र आदि।
Q4. क्या स्तोत्र का अर्थ और लाभ भी दिए गए हैं?
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